कानून राजनीति में अपराधों और अपराधियों को रोकने के सारे प्रयास इसलिए विफल हो जाते हैं कि कानून बनाने वाले ही कानून की परवाह नहीं करते। यदि घर का रखवाला ही घर का चोर हो तो उस घर की रक्षा कैसे हो सकती है। निर्वाचन आयोग बिना दांत का शेर है। उसके रोके राजनीति में अपराधकर्मियों का प्रवेश रूक नहीं पा रहा। आयोग को कानून द्वारा बहुत शक्तिशाली बनाने की आवश्यकता है और इसके लिए विशेष अदालत के गठन की आवश्यकता है। उम्मीदवारों द्वारा दिये गये आय और संपत्तियों के ब्योरे भी झूठ होते हैं। इस बिन्दू पर विचार-विमर्श कर कड़े कानून बनाने की आवश्यकता है। __ कानून बनाना तथा मामलों की न्यायिक जांच कराना आसान है। कठिन ने वालों काम है कानून का कड़ाई से पालन करना तथा उपयोग को निष्पक्ष रूप से काम करने देना और आयोग के प्रतिवेदन पर त्वरित कार्रवाई करना जो नहीं होता। जन प्रतिनिधियों को इतनी शक्तियां प्राप्त हैं कि वे अपनी सुरक्षा के लिए चलता फिरता फौजों का किला बनाये रखता है। यह जनतंत्र है जिसमें सार्वभौम शक्ति जनता के हाथ में होती है मगर एम.पी. और एमएलए से मिलने के लिए जनता को इन नेताओं के दरबार में हाथ जोड़े खड़ा रहना पड़ता है। कोई न कोई ऐसा प्रावधान हो कि जनता की सुरक्षा की प्रधानता हो। एक एमपी, एमएलए, मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सैंकड़ों फौजी लगे रहते हैं मगर हजारों हजार जनता के लिए एक लाठीधारी सिपाही नहीं होता। कानून के जंगल में जनता भटक रही है। हम जिन्हें जन प्रतिनिधि कहते हैं, असल में वे पार्टी-प्रतिनिधि हैं। हर पार्टी वाले अपने उम्मीदवार खड़ा करते हैं। उसे खड़ा करने के समय मतदाता से राय नहीं पूछी जाती। ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।ये सारे गोलमाल नेता लोग, जनतंत्र के नाम पर करते हैं, इसीलिए जनतंत्र की रक्षा के लिए संविधान में आवश्यक संशोधन वक्त की आवाज है क्योंकि सफल और सार्थक लोकतंत्र के लिए हम योग्य उम्मीदवार खड़ा करना चाहते हैं कि ताकि हमारी लोकसभा तथा विधान सभायें अपराधियों से मुक्त रहें। लक्ष्मी निधि
कानून बनाने वाले ही कानून की परवाह नहीं करते