पैरिस के बासतील किले में एक दिन एक रहस्यमय कैदी को लाया गया, जो उस किले में चार वर्ष तक जीवित रहा। उसकी मृत्यु के साथ ही फ्रांस के इतिहास का एक ऐसा रहस्य भी हमेशा के लिए दफन हो गया जिसके संबंध में भिन्न- भिन्न प्रकार की अटकलें लगाई जा रही हैं। इस कैदी से संबंधित विचित्र बात यह थी कि उसका चेहरा हर समय मखमली नकाब से ढका रहता था। यहां तक कि जब उसकी मौत के बाद उसे दफनाया गया, तब भी उसका चेहरा नकाब से ढका हुआ था। उस कैदी ने बासतील किले में आने से पूर्व भी अपने जीवन के तीस साल नकाब पहन कर ही व्यतीत किए थे। सन 1664 में गिरफ्तार किया गया यह कैदी सर्वप्रथम जब पिआनेराल की जेल में लाया गया था, तब भी उसका चेहरा नकाब से ढका हुआ था।
नया अधिकारी सैमारस जब बासतील जेल में नियुक्त होकर आया था, तब इस कैदी को भी अपने साथ लेकर आया था। इस किले में आने से पूर्व तीस वर्षों से जहाँ-जहाँ भी सैमारस का स्थानांतरण हुआ था, यह कैदी उसके साथ ही होता था मगर स्वयं सैमारस को भी इस कैदी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। सैमारस को यह राज आज्ञा मिली थी कि ज्यूँ ही कैदी अपना मुँह खोले, उसका सिर काट दिया जाए। यही नहीं, अपनी दैनिक जरूरतों की पूर्ति के अतिरिक्त वह किसी अन्य वस्तु के लिए मुंह खोले तो उसे जान से मारने की धमकी दी जाए।
दो बंदूकधारी हमेशा उस कैदी के साथ रहते थे, मगर उसे आम कैदियों की भाँति नहीं रखा जाता था। जीवन की सभी सुख-सुविधाएँ उसको उपलब्ध करवाई जाती थीं। प्रतिबंध केवल इतना था कि वह कभी भूल कर भी अपना नकाब न उतारे और जुबान बंद रखे।
कौन था वह रहस्यमय और अभागा कैदी जिसे चौंतीस वर्ष नकाब के पीछे रहने के लिए विवश किया गया।क्या वास्तव में ही उसे किसी अपराध की सजा दी जा रही थी या उसे इस प्रकार गुप्त रख कर कोई संकट टाला जा रहा था। यदि ऐसा था तो उसे समाप्त क्यों नहीं कर दिया गया। ऐसी कितनी ही धारणाएं लगाई गयीं, मगर असलियत के सर्वाधिक समीप पहुंच सका लार्ड स्वूड नामक एक विद्वान परन्तु हर किसी को इस रहस्य को समझने के लिए फ्रांस के इतिहास के पन्नों का निरीक्षण करना पड़ेगा।
लुई तेहरवां जो लुई चौदहवें से ठीक पहले फ्रांस का राजा था, ने अपने वैवाहिक जीवन में कभी भी दाम्पत्य सुख का आनंद नहीं उठाया था। नफरत की एक दीवार पति-पत्नी के मध्य थी, जिसको पार करने का प्रयत्न दोनों में से किसी ने भी नहीं किया था। लुई तेहरवें के कोई सन्तान नहीं थी और न ही सन्तान होने की कोई आशा थी क्योंकि राज-दम्पति एक दूसरे का मुँह देखना भी पसंद नहीं करते थे।
यूँ तो फ्रांस का राजा लुई तेहरवां था मगर राज प्रबंध की बागडोर प्रधानमंत्री हिगलु के हाथों में ही थी। राजा के नि:सन्तान होने की सबसे अधिक चिंता प्रधानमंत्री को ही थी अन्तत: काफी सोच-विचार के बाद हिगलु को एक युक्ति सूझी। उसने राजा और रानी में रस्मी समझौता करवाया ताकि लोग समझें कि वह दोनों पति- पत्नी की तरह ही रहते हैं। कुछ समय बाद फ्रांस की जनता ने बड़ी हैरानी के साथ यह समाचार सुना कि विवाह के पंद्रह साल बाद रानी ऐन ने एक खूबसूरत बेटे को जन्म दिया।
यह 1638 की बात है। यही बेटा आगे चलकर लुई चौदहवें के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसका जन्म ऐसी संदिग्ध परिस्थितियों में हुआ कि फ्रांस के इतिहास की प्रामाणिक पुस्तकों में भी यह लिखा हुआ है कि अत्यंत आश्चर्यजनक ढंग से लुई तेरहवें को पुत्र की प्राप्ति हुई
इस सारे गोलमाल के संबंध में लार्ड स्वूड का विचार है कि प्रधानमंत्री हिगलु ने रानी ऐन को इस बात के लिए सहमत कर लिया था कि वह बुरवों वंश के ही किसी राज-बेटे के साथ शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करके माँ बन जाए।ऐसे तंदरूस्त नवयुवक का मिलना कठिन नहीं था क्योंकि लुई तेरहवें के पिता के कई अनुचित बेटे राज परिवार में मौजूद थे।
फ्रांस के उत्तराधिकारी की समस्या को सुलझाने के लिए रानी ऐन ने यह सुझाव मान लिया। हिगलु ने इस महत्त्वपूर्ण गुप्त कार्य के लिए बुरवों वंश के एक नवयुवक को चुन लिया। वैसे भी रानी ऐन कोई दृढ़ चरित्र की मालकिन नहीं थी। पति की मौत के बाद अपने बेटे लुई चौदहवें के प्रधानमंत्री के साथ उसके संबंध इतने घनिष्ठ थे कि लोग उन्हें पति- पत्नी ही कहा करते थे।
अन्तत: प्रधानमंत्री हिगलु के प्रयत्नों से रानी ऐन माँ बनी। उसके बेटे की शक्ल- सूरत तथा रहन- सहन लुई तेरहवें से बिलकुल अलग था।राज दरबार में वह अक्सर इस कारण चर्चा का विषय बन जाता। राज्य का उत्तराधिकारी प्राप्त करने के पश्चात हिगलु ने लुई चौदहवें के असली पिता अर्थात उस नवयुवक को कहीं दूर देश में भेज दिया, ताकि इस रहस्य पर पर्दा पड़ा रहे।
सन 1664 के एक गर्मी वाले दिन , एक अजनबी बंदरगाह पर उतरा।संयोग से उसे किसी ने भी नहीं पहचाना। वह अजनबी कोई और नहीं अपितु बुरवों वंश का वही नवयुवक था जो राजा का असली पिता था। वह वृद्धावस्था में सुखमय जीवन व्यतीत करने की आशा लेकर फ्रांस पहुंचा था।
लुई चौदहवें को किसी प्रकार उस अजनबी के फ्रांस पहुँचने की सूचना मिल गई। सूचना मिलते ही तुरन्त उस अजनबी को गिरफ्तार कर लिया गया। उसका चेहरा लुई चौदहवें के साथ इतना ज्यादा मिलता -जुलता था कि उसके प्रकट होते ही राजा की स्थिति अत्यंत अपमानजनक हो सकती थी । विद्रोह तक हो सकता था, अत: इन सब बातों के दृष्टिगत लुई चौदहवें ने उस अजनबी को कैद कर लिया। उसने उस अजनबी को सभी सुख -सुविधाएँ तो दीं, मगर हमेशा के लिए कैदी बना कर उसका चेहरा मलमल के नकाब से ढक दिया गया।उसका चेहरा देख कर लुई चौदहवें का रहस्य न खुल जाए, इसी भय के कारण अधिकारियों को यह कड़ा आदेश दिया गया था कि यदि वह अपने चेहरे से नकाब हटाए अथवा जुबान खोलने का प्रयास करे तो तुरन्त उसे मौत के घाट उतार दिया जाए।
गुरिन्दर भरतगढिय़ा
क्यों उस कैदी का चेहरा सारी उम्र नकाब से ढक कर रखा गया?